बुधवार, मार्च 23, 2011

लघुकथा - 4

                  भ्रूण हत्या                                         
रीटा अल्ट्रासाउंड करवाने के लिए प्रतीक्षाकक्ष में बैठी थी . वहीं पर उसकी मुलाकात पूजा से होती है . बातों-बातों में रीटा पूजा को बताती है कि उसने पहले भी तीन बार अल्ट्रासाउंड करवाया है .
             पूजा रीटा से पूछती है कि अब उसके कितने बच्चे हैं . रीटा हाथ से इशारा करते हुए कहती है कि - " कहाँ ! तीनों बार तो लडकियाँ थी , इसलिए अबोर्शन करवाती रही . "
 पूजा - " क्यों ? लडकियाँ थी तो क्या हुआ थी तो आपकी सन्तान , और लडके तथा लडकी में अंतर ही क्या है ?"
रीटा - " अंतर क्यों नहीं , अंतर-ही-अंतर है . लडके माता-पिता के बुढापे का सहारा बनते हैं और लडकियाँ ... लडकियाँ तो माँ-बाप पर बोझ होती हैं . "
पूजा - " अगर तुम्हारी तरह तुम्हारे माँ-बाप भी यही सोचते और तुम्हारी भ्रूण हत्या करवा देते तो तुम भी माँ-बाप पर बोझ न बनी होती और न ही इन मासूम बच्चों का कत्ल हुआ होता ."
          रीटा को पूजा की यह बात सुनकर ऐसा लगा जैसे पूजा ने उसके गाल पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिया हो .

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